Sunday, December 6, 2009

इमारते रोज गिरती है
फिर नई बन जाती है
वो इंसानी तामीर है
पर जिंदगी गिरती है
तो फिर बिखर जाती है
क्यों की वो खुदा की तामीर है

राह सामने दो होगी

एक काँटों से भरि होगी

दूसरी चमकती रेत का दलदल होगी

समझके रह चुन्नी होगी

एक में काँटों से लहू लुहान पाव होगे

पर मंजिल तक पहुच जाऊगे

चमकती रेत दिल को बहुत लुभाए गी

पर पाव रखते ही मंजिल तो क्या मिलेगी

मौत के मुह में समां जाओगे

रह समझ कर चुनना

भले ही काँटों भरी ही सही

Monday, April 21, 2008

सुकून नहीं मिलाता

कुछ नसीब ऐसे भी है जिन्हें सुकून नहीं मिलता,
तपते रेगिस्तानों में प्यासे को दरिया नहीं मिलता ,
झुलजती धुप में राही को द्रक्हतो के साये नहीं मिलता ,
कुछ नसीब ऐसे भी है जिन्हें शुकुन नहीं मिलता
तूफानों में घिरे मुसाफिर को किनारा नहीं मिलता ,
भंवर में फसे लोगो को जीवन नहीं मिलता,
कुछ नसीब ऐसे है जिन्हें शुकुन नहीं मिलता ,
अगरचे खवाहिशकरे दोस्ती कि दोस्त नहीं मिलाता,
मकान मील जाता है घर नहीं मिलता ,
रिश्तो कि भीड़ बहुत मिलती है अपना कहा सके वो रिश्ता नहीं मिलता ,
कुछ बदनसीब ऐसे भी है जिन्हें दिल से शुकुन नहीं मिलता

Sunday, March 16, 2008

कह दे सभी जज्बात
फिर मुलाकात हो न हो
शायद इस जन्म में
फिर बात हो न हो
वादा न मिलाने का
निभाऊ गी हो न हो
शायद इस जन्म में
बात हो न हो
तेरे मिलाने को
न आऊ हो न हो
कह दे सभी जज्बात
फिर बात हो न हो
शायद इस जन्म में
मुलाकात हो न हो

Monday, February 25, 2008

करुनानिधान की कृपा से
वृक्षों पे नव किसलय निकले
कहकहे कुसुमो ने इस कोशल से लगाये
कर्तव्य पथ से डेट रहे
बसंत की कसौटी पे खरे रहे
जगनिर्माता कलाकार भी
देख उन्हें कवि बन
कविता में कार्न्ति बीज
मानव मन में बोगाया
उसकी कविता बिखरे
ये सोच मोन कमाओ
का काक लगा
आपना काम पूरा कर चला

Tuesday, January 22, 2008

लकीर के फकीर बहुत मिलिगे ..
खुद से फकीरी की हो जहा में कम मिलेगे..
कद में ओरो से भले ही कम मिलेगे..
भरी भीड़ में भी हम ओरो से अलग दिखेगे

Monday, January 14, 2008

सूरज की तरह तू भी दमके ..तुझ ही से हो जग रोशन ..चाँदनी की थोडी चंचलता ..पर मन हो चन्दा सा शीतल ..धरती सा धीरज हो तुझमे ..पर्वत सी द्र्धनता तू पाए ..गंभीर गहरा सागर सा बन ..शिखर सफलता के तू छुए ..आशीष मेरी ..छाया बन सदा tere साथ चले ..